Sunday, April 10, 2011

जारी रहेगा अन्ना का अनशन

९ अप्रैल २०११ के पहले तक ७२ वर्षीय अन्ना हजारे को भारत में जाननेवाले लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं रही होगी,  जब अन्ना हजारे ने  भूखे रहते हुए अनशन की घोषणा की उसके तुरंत बाद पूरे देशवासियों में जंगल के आग की तरह यह ख़बर फैलने लगी थी की अन्ना हजारे ७२ वर्षीय वृद्ध पुरुष हैं जिन्होंने करप्सन  और करप्सन  में लिप्त सरकार के ख़िलाफ़ जंग का एलान किया है. १२१ करोड़ के आबादी वाले इस देश में अन्ना हजारे के अनशन को समर्थन करनेवाले लाखों लोगों को यह भी पता नहीं होगा की ड्राफ्टिंग बिल कमिटी क्या करेगी और लोकपाल बिल बनने से आम जनता को क्या फ़ायदा होगा, लेकिन लोगों के समर्थन के पीछे एक ही ज़ज्बा कायम रहा की इससे करप्सन ज़रूर कम होगा. अन्ना हजारे के अनशन के दौरान देशवासियों में कमाल का जोश देखा गया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया से  निरंतर इस ख़बर का अपडेट मिलता रहा की सरकार इस विषय पर कितनी गंभीर है, अन्ना हजारे के प्रतिनिधियों की सरकार से आज क्या बातचीत हुई है बातचीत का क्या नतीज़ा निकला और मीटिंग कितनी सफल रही. 
                           अन्ना हजारे के अनशन के दूसरे दिन जब मैं अपने दफ्तर पहुंचा और उसके बाद अपने एक मित्र से अन्ना के बारे में उनकी व्यक्तिगत राय मांगी तो मेरे मित्र का जवाब था अन्ना हजारे ७२ साल के एक नौयुवक हैं और हम और आप २८ साल के वृद्ध पुरुष हैं यह कहते हुए उनके चेहरे पे कमाल की रौनक नज़र आ रही थी ऐसा लगा की जैसे मेरे मित्र मेरे साथ मेरे दफ्तर में काम कर रहे हैं लेकिन उनकी आत्मा हजारे को समर्थन देने के लिए जंतर मंतर दिल्ली में  विराजमान है. अनशन के दूसरे दिन ही मेरे एक दूसरे मित्र का फ़ोन आया उन्होंने कहा मैं अपनी  कंपनी के स्टाफ से बात कर रहा हूँ की हम सारे स्टाफ मिलकर अलग-अलग जगहों पर हस्ताक्षर मुहीम चलाएंगे और उस बैनर को दिल्ली तक पहुचाएंगे सरकार को आभाश दिलाएंगे की इस लड़ाई में अन्ना अकेले नही हैं मेरे मित्र के इस बात से मुझे लगा की पूरे भारत के लोग अलग- अलग माध्यम से अपना समर्थन अन्ना तक पहुचाने के लिए बेचैन हैं . अनशन के तीसरे दिन सुबह ९ बजे मेरे एक मित्र  जो की फार्मा सेक्टर में नौकरी करते हैं उनका फ़ोन आया उन्होंने कहा क्या आपको पता है की  दिल्ली में इस वक़्त अन्ना हजारे करप्सन के खिलाफ भूखे रहकर अनशन कर रहे हैं जवाब में मैंने कहा हाँ मुझे पता है तो आगे उनका कहना था की जो भी हो रहा है वह बहुत अच्छा हो रहा है और हजारे का आन्दोलन सही दिशा में जा रहा है आप देखिएगा बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है. अन्ना हजारे के इस अनशन को समर्थन देने वाले लोगों में हम और आप जैसे करोड़ों नौयुवक. वृद्ध. पुरुष.महिलाएं और बच्चे शामिल थे जिनकी दो या तीन पीढियां आज भारत की आज़ादी के ६३ साल गुजर जाने के बाद तक मूक दर्शक बने रहकर करप्सन के बेतहाश दर्द को महसूस किया है.
                       २५ साल पुराना बोफोर्स घोटाला मामला, १९८४ सिख कत्लेआम, भोपाल गैस कांड, बाबरी मस्जिद डेमोलीसन, गोधरा कांड, टूजी स्पेक्ट्रुम घोटाला, आदर्श घोटाला, अब्दुल करीम तेलगी स्टंप पेपर घोटाला, कंधार हवाई जहाज़ अपहरण मामले में सरकार की लापरवाही ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जो पूरे देशवासियों को सोचने के लिए मजबूर करते है की हमारी सरकार की ऐसी कौन सी  मजबूरियां हैं जिनके कारण सरकार को ऐसे मुदों को एक लम्बे अरसे तक ढोना पड़ रहा है, किसी भी मामले के निर्णय में देश की जनता को इतना लम्बा इंतजार क्यों करना पड़ता है. बेरोजगारी, गरीबी और बढती हुई महंगाई वाले इस देश में जनता चौतरफा मार झेल रही है. अन्ना हजारे के अनशन को समर्थन दे रहे लोगों में देश की सम्पूर्ण आबादी का आक्रोश नज़र आया है. जब तक हमारे देश की सरकार अपने काम काज में पारदर्शिता नहीं लाएगी, सरकार को हर बार इस तरह के आन्दोलन से रूबरू होना पड़ेगा. सरकार को बार-बार कानून में शंशोधन करना पड़ेगा, बार-बार होनेवाले शंशोधन से संविधान की गरिमा भी कम होगी. जब तक सरकार देश के उपरी स्तर से लेकर सबसे निचे के स्तर तक काम करने में पारदर्शिता नहीं दिखाएगी इस तरह के अनशन का दौर चलता रहेगा सिर्फ़ अनशन का रूप स्वरुप बदल जायेगा. अनशन के कई रूप होते है जो अलग-अलग जगह पर अलग-अलग स्वरुप में नज़र आते है. हाल के दिनों में टुनिशिया और लीबिया में जो हुआ वो भी एक अनशन का खुनी रूप था. अन्ना हजारे अपने अनशन के दौरान हमेशा एक बात को दुहराते रहे की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत ईमानदार नेता हैं, लेकिन उनके मंत्रिमंडल में बहुत सारे दागदार नेता हैं जिनको बदलने की जरूरत है. ऐसे में सरकार को ध्यान देना चाहिए की सरकार उन सारी बातों पर गौर करे जो की  देश की जनता को मंजूर ना हो.अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो अन्ना हजारे के इस देश में बहुत सारे लोगों के दिमाग में अन्ना हजारे पनप रहे हैं. गौरतलब है की सरकार मौजूदा समय में जब एक अन्ना का अनशन नहीं झेल पा रही है तो जब हजारों अन्ना, सरकार और हुकुमरान के खिलाफ़ प्रदर्शन करेंगे तो सरकार अपनी शाख कैसे बचाएगी देखते रहिये जब तक सरकार और हुकुमरानो के कामकाज में पारदर्शिता नहीं आएगी ऐसे अनशन का दौर चलता रहेगा.

Tuesday, March 29, 2011

काश सारी दीवारें गिर जाती


वर्ल्ड कप २०११ के क्वार्टर फाइनल  में इंडिया ने जब से ऑस्ट्रेलिया को हराया हैं भारत और पाकिस्तान के प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने भारत और पाकिस्तान के बिच होने वाले सेमी फाइनल  को एक घमासान युध्ह में तब्दील कर दिया है, हर जगह आंकड़ों के माध्यम से टीम और खिलाडियों का आकलन हो रहा है, कही भारत जीत रहा है तो कही पाकिस्तान। गौरतलब है की ऑस्ट्रेलिया के हारने के बाद ऑस्ट्रेलिया टीम के कप्तान रिक्की पोंटिंग ने भी कप्तानी से सन्यास ले लिया है, जिसकी टीम लगातार तीन बार वर्ल्ड कप जीत चुकी है तो क्या रिक्की पोंटिंग के लिए यह इतना बड़ा मुद्दा था की वोह अपनी कप्तानी छोड़ दे।दोनों किस्सों पर नजर डाले तो एक बात साफ़ हो जाती है की सारा खेल जीत- हार का है, घमंड का है और अहंकार  का है। ऑस्ट्रेलिया हार गयी  तो यह रिक्की पोंटिंग की हार  थी  जिसने कप्तानी से सन्यास  ले लिया, हिंदुस्तान और पाकिस्तान में से कोई  नहीं  हारना  चाहता  क्योंकि  यह उनके  देशवासियों  के अहंकार  और घमंड की बात है। इन  सारी  घटनाओं  को देखने  के बाद पूरे   दुनिया  के सभी  बड़ी  टीमों  में खेल भावना  की कमी  नज़र  आती  है। भारतीय  खिलाडी  अनिल  कुंबले  पुरे  करियर  के दौरान यह सिखाते  रह  गए  की खेल को खेल भावना की नजर से देखना  चाहिए  लेकिन  भारतवासियों  के  लिए  यह  हमेशा  अनसुनी  बात  बनी  रही.   सुना  है  की  मोहाली  में  होने  वाले  हिंदुस्तान और  पाकिस्तान  के  मैच  को  देखने  के  लिए  टिकेट  की  जोरदार  दलाली  हुई  है  काफी  महंगे  दामों में  टिकेट  बीके हैं  इतना  ही  नहीं  इस  मैच  को देखने  के  लिए  पाकिस्तान  से  और  हिंदुस्तान  के  काफी  बड़े  ओहदे  के  नेतागण  इकठे  हो  रहे  हैं  . इस  गर्मागर्मी  और युद्ध  जैसे  माहौल  के  निर्माण  के  लिए  कौन  जिम्मेदार  हैं  क्या  हमारी  छोटी  मानसिकता  जो  मीडिया  के  उस   इशारे   को  कभी  नहीं  समझ  पाती  जो  फालतू  मुद्दों  को ज्यादा  तुल देती  है  और  असली  मुद्दे  से  हमेशा  भटकी  हुई  नज़र  आती  है . क्या  मीडिया  को  इस  मुद्दे पर  आकलन  नहीं  करना  चाहिए  था  की  भारत   ने  ऑस्ट्रेलिया  की  पिछले  पंद्रह  साल  से  चली  आ  रही  बद्श्हाहत  को  खत्म  किया  है , क्या  यह  दुनिया  भर  में  क्रिकेट  खेलने  वाली  सारी  टीमों के लिए  एक  उपलब्धि  नहीं  थी  की  वर्ल्ड  क्रिकेट  में पिछले  बारह   साल  से  राज  करनेवाली  ऑस्ट्त्रलिया टीम  को पराजय  का  मुह  देखना  पड़ा  है . एक  नयी  खबर  सुनाने  को मिली  है  की  हिंदुस्तान  और  पाकिस्तान  के  बहुत सारे  हिस्सों  में  मैच  के  दौरान  छूटी  रहेगी , पाकिस्तान  से  हिंदुस्तान और  हिंदुस्तान  में  अपने  ही देश  के  एक हिस्से  से दुसरे  हिस्से  में  जाने  के  लिए  ३  गुना किराया  चुकाना  पड़ रहा  है  और  मैच  के  दिन  मोहाली  में  खासी  आबादी  इकठा होनेवाली  है  इसे  देखते  हुए  मोहाली  स्टेडियम   को  लगभग  एक छावनी  में  तब्दील  कर  दिया  गया  है . समझ  में  नहीं  आता  है  की  इस  तरह   के  आयोजन  से  हम दोनों  देश  एकदूसरे  के  नजदीक  आ  रहे  है  या  दूर  जा   रहे  है . हमारे  नेताओं  को  आधे  दिन के  बाद  छूटी  चाहिए  ताकि  वोह  इत्मिनान  से  घर  बैठकर  मैच  देख  सकें  इससे  हमारे  आम  जनता  के  बिच  में  किस  तरह  का  सन्देश  जायेगा पाकिस्तान  के  साथ  दुश्मनी  ख़त्म  करने  का  या  फिर  उसे  और  तुल  देने  का , खैर  जो भी  हो  अगर  आपके  अन्दर  आकलन  करने  की  सही  छमता  और  दुनिया को देखने  का  एक  अलग  नजरिया  हो  तो  इस  मैच  को  सिर्फ  खेलभावना से  ही  देखिएगा , क्योंकि  अगर  हिंदुस्तान  मां  है  तो  पाकिस्तान  मौसी  है. मां जीते  या  मौसी  दोनों  की  जीत  में  हमारी  जीत  है .

Tuesday, February 22, 2011

Ganguly Dada Shat Shat Naman

Main us Saurabh ganguly ko nahi janata hoon jise i.p.l mein khariddar nahi mile. Main us ganguly ko bhi nahi janata hoon jise gandi rajniti ke samne jjhukkar apne manpasand khel ko chhodana pada tha, balki main us ganguly dada ko janata hoon jisne “world cup 2003” ke dauran bhartiya criket team ki aguwai ki thi aur world cup ke final tak pahuchaya tha. Main us ganguly ko janata hoon jisne bharat ko videshi dharti par jitana sikhaya, jisne bhartiyya players ko creeze par slazing karna sikhaya, jisne team ke andar anushhashan laya. Mere jehan mein aaj bhi ganguly t-shirt ko nikalkar ghumate huye nazar aate hai. BCCI ke nayi khiladiyon ki fauj bhi ganguly dada ne hi tyaar ki thi . Aaj ke lagataar jitate huye naye bharatiya team ke jashn mein dada ka josh kahin na kahin jaroor jhhankata hai. Bhharat mein globaliisation apane pure ufan pe hai aur globaliisation ke is daur mein har poonjipati chahata hai ki kitani jaldi se woh dher sari uplabhdhiyon ko hasil kar le isliye ghode aur gadahon ki res mein sab bhag rahein hain i.p.l iska jita jagata namoona hai jismein un tamam logon ke paise lage hain jinko pata hi nahi ki cricket kya hai agar aise logon ke bich ganguly dada ka i.p.l mein selection nahi hota hai to yeh koi gambhir mudda nahi hai is baat ko lekar jayada chintit hone ki jaroorat nahi hai. Bharat mein ugate huye suraj ko har koi pranaam karta hai jabaaki dubate huye ssuraj ko pranam karne ki pratha hamare bharat meein nahi hai waise hum bharatwasiyon ko yeh baat hamesha yaad rakhhani chahiye ki jo ugata hai who dubataa jaroor hai aur agar dubega naahi to naya suraj kahaan se ugega. Aajkal cricket mein bahut sare suraj chamake hai jabki dada ke sitare gardish mein hai. Ek bar bulaandiyon ko chhune ke bad tiraskar mein bhi ek alag maja hota hai isliye ganguly dada hamare jehan mein hamesha star cricketer ke taur par bane rahenge. Dada ko koi retire nahi kar sakta dada taumra sabke chehte bane rahenge.

मैं बिहार बोल रहा हूँ

नमस्कार  मैं  बिहार  बोल  रहा  हूँ, मैं  कोई  जाती-धर्म या  व्यक्ति  विशेष नहीं  हूँ  बल्कि  मैं  एक  राज्य  हूँ  जो  अपने गठन  और  आजादी   के  साथ  ही  अपनी  पहचान  ढूढने  में  लगा  हूँ . तमाम  बुध्हजिवियों  को  पैदा  करने  के  बावजूद  मैंने  अपने  राज्य  में  शिक्षा  का  विकसित  रूप  कभी नहीं  देखा  जिसके  कारण  मेरे  रहिवासियों  को  हमेशा  से  गवार  बिहारी  कहकर  बुलाया  जाता  रहा  है. शिक्षा  के  सभी  मापदंड  मेरे  लिए  अछूते  से  रहे. मैंने  विकास  की  उस  रफ़्तार  का  आनंद  कभी  नहीं  लिया  जिसके  कारण  मुझे  देश  के  बाकि  राज्यों  का  ताना  सुनना  पड़ता  है  और  मेरे  निवासियों  को  जिल्लत  भरी  ज़िन्दगी  जिनी  पड़ती  है. करोड़ों  की  आबादी  के  साथ  मैं  हमेशा  से  इंतजार  कर  रहा  हूँ  की  मैं  कब  विकास  की  रह  पर  चलूँगा,  मैंने  विकास  की रह  पर  अभी  चलना  शुरू  ही  किया  था  की  भ्रस्टाचार  ने  मेरी  कमर  तोड़  दी. पिछले  पांच  साल  में  मीडिया  ने  मेरे  नाम  की  बहुत  रोयाल्टी खायी  है  चौबीस  घंटे  के  न्यूज़  चैनल  पर  हर  दिन  हर  चैनल  पर  कम  से  कम  1 मिनट  मेरी  ख़बर  जरूर  दिखाई  गयी. मैं  आज  भी  यह  सोचने  में  असमर्थ  हूँ  की  पिछले  पांच  साल  में  विकास  के  किन  बुलंदियों  को  छुआ है. पिछले  पांच  साल  में  मैंने  अपने  वास्तविक  विकास  को  कभी  महसूस  नहीं  किया  है. विकास  सिर्फ  सरकारी  पन्नो  पर  हुआ  है, न्यूज़  चैनल्स  पर  हुआ  है. भ्रष्टाचार  ने  मुझे  आतंरिक  रूप  से  खोखला  बना  दिया  है. विकास  के  नाम  पर  हर  शुरुआत  के  साथ  एक  दरवाज़े  से  विकास  आया  और  दूसरे  दरवाज़े  से  भ्रष्टाचार  ने  भी  अपनी  उपस्थिति  दर्ज  कराई. मुझे  शिक्षामित्र  के  नाम  पर  अनपढ़  अशिक्षित  लोगों  की  फौज  मिली  जिन्होंने  शिक्षक  बनने  के  लिए  भ्रष्टाचार  का  सहारा  लिया.  आज  भी  बिजली  के  लिए  तरसते  मेरे  बहुत  सारे  गांवो  में  बिजली  नदारद  है  वैसे  तो  यह  बिजली  पिछले  पाँच साल  से नेताओं  के  भाषण   में  आती  जाती  रही  है  पर  बिजली  के  उजाले  के  नाम  पर  मैंने  आज  तक  सिर्फ  इलेक्ट्रिक  के  खम्बे  ही  देखे है, कब  आएगी  बिजली  पता  नहीं.
पलायन  के  नाम  पर  अन्य  राज्यों  द्वारा  पिटते  हुए  मेरे  रहिवासियों  को  रोकने  के  लिए  मेरे  पास  ऐसा  कुछ  भी  नहीं  है  जिसके  दम  पर  मैं  उनके  पलायन  को  रोकने  का  दम  भर  सकूं . क्या  एक  काम  यह  नहीं  हो  सकता  है  की  रोज -रोज  चर्चा  में  आने  के  लिए  मीडिया  के  आगे  पीछे  घूमने  के  बजाय  और  जनता  दरबार  सजाने  के  अलावा  राज्य  की  राजधानी  को  छोड़कर  ग्रामीण  स्तर  पर  यह  आकलन  किया  जाये  की  विकास  की  शुरुआत  कहाँ  से  और  कैसे  की  जाये, पिछड़ेपन  के  नाम  पर  बिहार  और  झारखण्ड  के  बटवारे  को  आखिर  हम कितने  दिन  तक  कोसेंगे  और  कब  हम  अपने  ही  राज्य  में  बेहतर  सुविधा  ढूढने  की  कोशिश  करेंगे  और  बटवारे  के  दर्द  से  बहार  निकलेंगे. विकास  के  नाम पर  होनेवाले हो -हंगामें  की कड़ी  में  यह  छटवां  साल  भी  जुड़  गया  है.
अगर  आपसे  कोई  मेरे  बारे  में  पूछे  तो  कहियेगा  65% भ्रष्टाचार  + 35% विकास  = बिहार  और  बिहार  में  विकास  की  धीमी  रफ़्तार. मेरे  विकास  की  रफ़्तार  धीमी  है  लेकिन  विकास  का  पहिया  जरूर  घूम  रहा  है  आखिर  मैं  भी  कितने  दिन  तक  एक   ही  जगह  पर  खड़ा  रहूँगा. अगर  आपका  भी  बिहार  से  नाता  हो  तो  एक  बार  बिहार  जरूर  लौट  कर  आईयेगा  मेरा  आकलन  करने  के  लिए  नहीं, बल्कि  मेरे  विकास  में  योगदान  के  हौसले  के  साथ  क्योंकि  अगर  आपलोग  मेरी  मदद  नहीं  करेंगे  तो  मैं  अकेले  के  दम  पर  कितना  विकास  करूँगा. उम्मीद  है  आप  भी  मेरे  दर्द  को  जरूर  महसूस  करेंगे. बाकि  बातें  फिर  कभी.
नमस्कार
आपका  अपना  राज्य  बिहार 


Friday, June 25, 2010

बिमलदा

बिमलदा (विमल रॉय) आज एक गुज़रे हुए इतिहास हैं मुझे बिमलदा की याद इसलिए आई क्योंकि मैंने हाल ही में गुलज़ार साहब की "रावीपार" पढ़ी है इस पुस्तक में गुलज़ार साहब ने बिमल दा के जीवन के आख़िरी सफ़र को बख़ूबी पन्ने पर उतारा है। बिमलदा ने "दो बीघा ज़मीन" और "बंदिनी" जैसी कालजयी फिल्में बनायीं थी, जो कल और आज में मौजूद भारतीय परिवेश को दर्शाती हैं । वैसे तो उन्होंने ढेर सारी फिल्में बनायीं है, लेकिन मुझे सिर्फ दो ही फिल्में ज्यादा अच्छी लगी। गुलज़ार साहब ने अपनी पुस्तक "रावीपार" में इनके मृत्यु के थोड़े दिनों पहले की कहानी बयां किया है। इन्होंने लिखा है, की बिमल दा मरने से पहले हर बारह वर्ष में लगनेवाले महाकुम्भ को लेकर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। सन १९५२ में महाकुम्भ के दौरान प्रयाग के मेले में भगदड़ हुई थी जिसमे तक़रीबन १ लाख लोग मारे गए थे इसके चलते नुकसान भी काफ़ी हुआ था। एन्कवायरियां चलती रही सच्चाई का पता लगाने के लिए बहुत सारी कमिटियों का गठन हुआ लेकिन सही सच्चाई कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना को सम्रिश नामक व्यक्ति ने अपने नोवेल में उतारा लेकिन नोवेल के नायक की मौत जल्दी करा दी थी,बिमल दा इस नोवेल पर फ़िल्म बनाना चाहते थे लेकिन नायक की मौत जल्दी होने की वजह से वःखुश नहीं थे इस फ़िल्म की कहानी के लिए वो गुलज़ार साहब के साथ मिलकर काम कर रहे थे, गुलज़ार साहब के साथ मिलकर बातें किया करते थे की इस नोवेल के नायक की मौत को थोडा आगे करो एक सही जगह दो कहानी की चर्चा करते-करते वर्षों बीत गए और बिमलदा को कैंसर हो गया मरने के पहले तक वो गुलज़ार साहब से पूछा करते थे की तुम फ़िल्म पर काम कर रहे हो न और गुलज़ार साहब का जवाब होता था हाँ कर रहा हूँ। आख़िरी दिनों में इस फ़िल्म के कुछ दृश्य शूट भी करवाए और जब उनकी मृत्यु हुई वह दिन जोग स्नान का दिन था। जोग स्नान वह दिन है जिसके लिए बिमलदा फ़िल्म बनाना चाहते थे और इक्त्फाक से उसी दिन उनकी मृत्यु भी हुई थी। शायद बिमलदा जिन्दा रहे होते तो एक और बेहतरीन फ़िल्म देखने को मिल जाती और यह भी पता चल जाता की भगदड़ क्यों हुई थी, गुलज़ार साहब ने अपनी कहानी बिमलदा में बिमलदा के मौत को कुछ इस अंदाज में दर्शाया है जैसे मौत सारी समस्याओं का निवारण है बहुत राहत देती है। आज बिमलदा जिन्दा होते तो शायद "भोपाल गैस कांड" पर भी फ़िल्म बनाते जिससे लोगों तक सच्चाई पहुँचती। हो हल्ला भी होता और सरकार घटना के २५ साल बाद तक शांत नहीं बैठती पीड़ितों को मुवाज़ा भी सही समय पर मिलता क्योंकि बिमलदा ने बहुत पहले ही "दो बीघा ज़मीन " फ़िल्म बनाकर लोगों को बताया था की पहले अंग्रेजों ने लूटा था अब किसान आमिर साहूकारों के हाथों कैसे लूट रहे। इसी तरह से कह सकते है की अगर आज बिमलदा जिंदा होते तो बताते की भारत के लोगों को किस तरह से शोषण सहने की आदत पद गयी है जैसे की पहले अंग्रेजों ने लूटा फिर साहूकारों ने और अब हमारे द्वारा बनायीं हुई सरकार लूट रही है।

Tuesday, September 8, 2009

भारतीय फिल्मों के बदलते रंग |

भारत में लगभग हर साल हजारों फिल्में बनती है और बॉलीवुड का सफर काफ़ी मनोरंजक रहा है|हमारी फिल्में ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन हो गई|भारत के बॉलीवुड में सबसे बड़ा बदलाव यह है की अब फिल्मों की पृष्ठभूमि गाँव से हटकर शहर में केंद्रित हो गई है|शायद आज कल फिल्में पहले से ज्यादा बनने लगी है या फ़िर फिल्मों को सिर्फ़ शहरी दर्शक के लिए बनाई जाती है और सिर्फ़ बड़े बड़े मल्टीप्लेक्सेस में रिलीज़ करने के लिए बनाई जाती है |आजकल तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों को सिनेमाहाल बंद हो रहा हैं | जो भी हो आज हमारा गाँव काफ़ी पीछे छुट गया हैं |यह देखकर अच्छा लगता है की अब पहले की तरह हमारे फिल्मों में हमारा नायक शहर से पढ़कर नही आता क्योंकि भारत में पहले से साक्षरता बड़ी है लेकिन अगर हम पहले की फिल्मों से तुलना करें तो हमारा समाज वही है, लोग वही, दर्शक वही हैं सिर्फ़ देखने और दिखाने का नजरिया बदला हैं |फ़िल्म दो बीघा ज़मीन में विमल रॉय ने लोगो को उसवक्त के सबसे बड़े समस्या से रूबरू कराया था |उन्होंने शाहुकारों के द्वारा गरीब किसानों के शोषण को बखूबी परदे पर उतारा था आज भी वही भारत है वही लोग हैं वही समस्या है सिर्फ़ नाम बदल गया है जिसका नाम है एस .. जेड और किसानो की बढती आत्म हत्या |भारत को गाँव का देश कहा जाता है |अगर पुरा भारत एक शरीर हैं तो गाँव देश के रीढ़ की वो मजबूत आधार है जिसके झुकने मात्र से देश की परिस्थति ख़राब हो सकती है |आज भरत में भ्रूण हत्या के मामले बढ़ रहे तो क्या बॉलीवुड की यह ज़िम्मेदारी नही बनती की महमूद की तरह कुवांरा बाप जैसी फ़िल्म बनाकर समाज में जागरूकता फैलाने की कोशिश करें|इतिहास गवाह है की भारत में जब भी प्रेरणास्पद फिल्में बनी १०० % सफल रही हैं और इसका जीता जागता उदहारण है फ़िल्म लगान ,तारे ज़मीन पर ,स्वदेश,रंग दे बसंती,लगे रहो मुन्ना भाई इससे यह पता चलता है की आज भी हमारे समाज में इन मूल्यों की कीमत है जो इन फिल्मों में दिखाएं गए हैं |हर देश के रखवाले होते हैं जो उसे बाकि समस्या से बचाते हैं और भारत में किसान ही इसके रखवाले हैं|इसलिए अगर रखवाला मजबूत होगा तभी हमारा देश भी मजबूत हो सकता हैं |आज जरूरत है की हमारे लोकतान्त्रिक भारत काचौथा खम्बा कहा जानेवाला मीडिया हमरे किसानों की मदत करें और प्रांतवाद और जादू टोना जैसा मुद्दों को बढावा देकर बॉलीवुड और सरकार दोनों को सोचने पर मजबूर करे की सरकार किसानों की ख़बर ले और मीडिया उनके दर्द को बयां करने का शहारा बने |

Friday, September 4, 2009

फ़ुट डालो और राज... करो

भारत जब अंग्रेजी राज में जी रहा था उस वक्त भारत में यातायात के साधन न होने से लोग एक दुसरे से नही मिल पाते थे |उस वक्त पत्राचार होता था और ब्रिटिश सरकार आपतिजनक पत्रों को उनके लक्ष्य तक पहुचने नही देती थी इसलिए लोगों का आक्रोश सिमित था |भारत में १६ अप्रैल १८५३ को जब रेलवे की शुरुआत हुई उस वक्त किसी ने नही सोचा होगा की रेलवे क्रांति का एक मध्यम हो सकता है |लोग आसानी से एक जगह से दुसरे जगह पहुचने लगेंगे और क्रांति की जोर पकड़ने लगेगी |अब जब भारत को आजाद हुए ६२साल हो गए और हमारे संविधान ने यह आज़ादी भी दी है की हम पुरे भारत में कही भी रह सकते है इसके बावजूद एक समस्या जो अभी भी रोड़ा बना है वो है प्रांतवाद |आम हो या खास हो किसी भी भारतीय को कभी यह जानने की जरूरत नही होती की उस्के साथ सम्बन्ध रखनेवाला व्यक्ति किस प्रान्त का है |लेकिन कुछ क्षेत्रीय राजनितिक दल अपने ख़ुद के हित के लिए जगह, जगह विभिन्न कार्यकर्मों के द्वारा भाषा ,क्षेत्र ,संस्कृति के माध्यम से ये समझाते है की हमारी संस्कृति ,समाज और भाषा को परप्रान्तियों की वजह से नुकसान हो रहा है |पिछले कुछ दिनों में ऐसी पार्टियाँ काफी सक्रीय हुई है और इनका निसान गरीब तबके के आम लोग होते है|जबकि सच्चाई यह है की क्षेत्रीय राजनितिक दल
छोटे छोटे मुद्दे को अपना आधार बनाकर लोकप्रियता हासिल करना चाहती है और राजनीती में लम्बी दुरी तय करना चाहती है | इस तरह से क्षेत्रीय राजनितिक दल भारत की विकास प्रक्रिया में एक रोड़ा है क्योंकि भारत के हर एक राज्य में सभी प्रान्त के लोग रहते हैं और भारत के संतुलित जी .डी .पी विकास में सबका योगदान समान्य है| इसलिए प्रांतवाद जैसे समस्या के निदान के लिए भारत का सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा कानून बनाये जिससे क्षेत्रीय पार्टियाँ इस तरह के मुद्दों के आधार पर हमें बाटने की कोशिश न करे और हमे यह न बताएं की हमे किससे नुकसान हो रहा है |आम आदमी आजाद हो सके की उसे कहाँ रहना है और नेताओं के इशारे पर होने वाले हादसे जो आम आदमी को रेल यात्रा के दोरान जो उसको एक प्रान्त से दुसरे दूसरे प्रान्त में जाने के लिए होते हैं वो रुक जाए क्योंकि इस तरह के होने वाले हादसे यह इशारा करते हैं की अगर ऐसा ही होता रहा तो सबसे पहले हमारी विकास प्रक्रिया रुकेगी हम क्षेत्रीय राजनितिक दल के गुलाम हो जायेंगे और फिर कोई नया सिस्टम लागु होगा फ़ुट डालो राज करो और हम टूकडों में बिखर जायेंगे|