Tuesday, September 8, 2009

भारतीय फिल्मों के बदलते रंग |

भारत में लगभग हर साल हजारों फिल्में बनती है और बॉलीवुड का सफर काफ़ी मनोरंजक रहा है|हमारी फिल्में ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन हो गई|भारत के बॉलीवुड में सबसे बड़ा बदलाव यह है की अब फिल्मों की पृष्ठभूमि गाँव से हटकर शहर में केंद्रित हो गई है|शायद आज कल फिल्में पहले से ज्यादा बनने लगी है या फ़िर फिल्मों को सिर्फ़ शहरी दर्शक के लिए बनाई जाती है और सिर्फ़ बड़े बड़े मल्टीप्लेक्सेस में रिलीज़ करने के लिए बनाई जाती है |आजकल तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों को सिनेमाहाल बंद हो रहा हैं | जो भी हो आज हमारा गाँव काफ़ी पीछे छुट गया हैं |यह देखकर अच्छा लगता है की अब पहले की तरह हमारे फिल्मों में हमारा नायक शहर से पढ़कर नही आता क्योंकि भारत में पहले से साक्षरता बड़ी है लेकिन अगर हम पहले की फिल्मों से तुलना करें तो हमारा समाज वही है, लोग वही, दर्शक वही हैं सिर्फ़ देखने और दिखाने का नजरिया बदला हैं |फ़िल्म दो बीघा ज़मीन में विमल रॉय ने लोगो को उसवक्त के सबसे बड़े समस्या से रूबरू कराया था |उन्होंने शाहुकारों के द्वारा गरीब किसानों के शोषण को बखूबी परदे पर उतारा था आज भी वही भारत है वही लोग हैं वही समस्या है सिर्फ़ नाम बदल गया है जिसका नाम है एस .. जेड और किसानो की बढती आत्म हत्या |भारत को गाँव का देश कहा जाता है |अगर पुरा भारत एक शरीर हैं तो गाँव देश के रीढ़ की वो मजबूत आधार है जिसके झुकने मात्र से देश की परिस्थति ख़राब हो सकती है |आज भरत में भ्रूण हत्या के मामले बढ़ रहे तो क्या बॉलीवुड की यह ज़िम्मेदारी नही बनती की महमूद की तरह कुवांरा बाप जैसी फ़िल्म बनाकर समाज में जागरूकता फैलाने की कोशिश करें|इतिहास गवाह है की भारत में जब भी प्रेरणास्पद फिल्में बनी १०० % सफल रही हैं और इसका जीता जागता उदहारण है फ़िल्म लगान ,तारे ज़मीन पर ,स्वदेश,रंग दे बसंती,लगे रहो मुन्ना भाई इससे यह पता चलता है की आज भी हमारे समाज में इन मूल्यों की कीमत है जो इन फिल्मों में दिखाएं गए हैं |हर देश के रखवाले होते हैं जो उसे बाकि समस्या से बचाते हैं और भारत में किसान ही इसके रखवाले हैं|इसलिए अगर रखवाला मजबूत होगा तभी हमारा देश भी मजबूत हो सकता हैं |आज जरूरत है की हमारे लोकतान्त्रिक भारत काचौथा खम्बा कहा जानेवाला मीडिया हमरे किसानों की मदत करें और प्रांतवाद और जादू टोना जैसा मुद्दों को बढावा देकर बॉलीवुड और सरकार दोनों को सोचने पर मजबूर करे की सरकार किसानों की ख़बर ले और मीडिया उनके दर्द को बयां करने का शहारा बने |

Friday, September 4, 2009

फ़ुट डालो और राज... करो

भारत जब अंग्रेजी राज में जी रहा था उस वक्त भारत में यातायात के साधन न होने से लोग एक दुसरे से नही मिल पाते थे |उस वक्त पत्राचार होता था और ब्रिटिश सरकार आपतिजनक पत्रों को उनके लक्ष्य तक पहुचने नही देती थी इसलिए लोगों का आक्रोश सिमित था |भारत में १६ अप्रैल १८५३ को जब रेलवे की शुरुआत हुई उस वक्त किसी ने नही सोचा होगा की रेलवे क्रांति का एक मध्यम हो सकता है |लोग आसानी से एक जगह से दुसरे जगह पहुचने लगेंगे और क्रांति की जोर पकड़ने लगेगी |अब जब भारत को आजाद हुए ६२साल हो गए और हमारे संविधान ने यह आज़ादी भी दी है की हम पुरे भारत में कही भी रह सकते है इसके बावजूद एक समस्या जो अभी भी रोड़ा बना है वो है प्रांतवाद |आम हो या खास हो किसी भी भारतीय को कभी यह जानने की जरूरत नही होती की उस्के साथ सम्बन्ध रखनेवाला व्यक्ति किस प्रान्त का है |लेकिन कुछ क्षेत्रीय राजनितिक दल अपने ख़ुद के हित के लिए जगह, जगह विभिन्न कार्यकर्मों के द्वारा भाषा ,क्षेत्र ,संस्कृति के माध्यम से ये समझाते है की हमारी संस्कृति ,समाज और भाषा को परप्रान्तियों की वजह से नुकसान हो रहा है |पिछले कुछ दिनों में ऐसी पार्टियाँ काफी सक्रीय हुई है और इनका निसान गरीब तबके के आम लोग होते है|जबकि सच्चाई यह है की क्षेत्रीय राजनितिक दल
छोटे छोटे मुद्दे को अपना आधार बनाकर लोकप्रियता हासिल करना चाहती है और राजनीती में लम्बी दुरी तय करना चाहती है | इस तरह से क्षेत्रीय राजनितिक दल भारत की विकास प्रक्रिया में एक रोड़ा है क्योंकि भारत के हर एक राज्य में सभी प्रान्त के लोग रहते हैं और भारत के संतुलित जी .डी .पी विकास में सबका योगदान समान्य है| इसलिए प्रांतवाद जैसे समस्या के निदान के लिए भारत का सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा कानून बनाये जिससे क्षेत्रीय पार्टियाँ इस तरह के मुद्दों के आधार पर हमें बाटने की कोशिश न करे और हमे यह न बताएं की हमे किससे नुकसान हो रहा है |आम आदमी आजाद हो सके की उसे कहाँ रहना है और नेताओं के इशारे पर होने वाले हादसे जो आम आदमी को रेल यात्रा के दोरान जो उसको एक प्रान्त से दुसरे दूसरे प्रान्त में जाने के लिए होते हैं वो रुक जाए क्योंकि इस तरह के होने वाले हादसे यह इशारा करते हैं की अगर ऐसा ही होता रहा तो सबसे पहले हमारी विकास प्रक्रिया रुकेगी हम क्षेत्रीय राजनितिक दल के गुलाम हो जायेंगे और फिर कोई नया सिस्टम लागु होगा फ़ुट डालो राज करो और हम टूकडों में बिखर जायेंगे|

Tuesday, September 1, 2009

हमारे देश को चलाता कौन है ?

भारत में लोकतंत्र है और सभी भारतवासी यह सोच कर अपने आप को महफूज समझते है की है हमारे देश की सत्ता हमारे लिए कुछ कर रही है,सोचना लाजमी है क्योंकि हमलोगों को लगता है की भारत के संसद में जो लोग बैठे है वो हमारा नेतृत्व करते हैं, यह हमारी सोच है लेकिन सच्चाई यह है की वो हमे गुमराह करते है|पाँच साल के कार्यकाल में हर पार्टी नए काम करने का दम भरती है वाहवाही के उस पाँच साल में जनता हिसाब लेना भूल जाती है|जब नई सरकार आती है तब अपना आवाज़ बुलंद करने के लिए पिछली सरकार को कोसती है|इस तरह क्या यह मान ले की हमारे नेता हमारे लिए नही बल्कि अपने लिए काम करते है| औरदिल्ली से मीलों दूर और अपने चुनावी क्षेत्र तक सड़क के दोनों तरफ़ बैनर्स चिपका कर अपना प्रचार करते हैं और अगले चुनाव की तयारी करते है|१९९९ से २००४ तक की भाजपा गठबंधन सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा निर्णय था कंधार मामला और पोखरण परिक्षण|पिछले ९ साल से भाजपा के वरिष्ठ नेता एक बात पर अडे रहे की कंधार मामले में जब विदेशमंत्री आतंकवादियों को लेकर अफगानिस्तान गए थे इस बात की जानकारी उस वक्त के गृहमंत्री को नही थी| इस तरह के बयां से यह पता चलता है की हमारी सरकार के गृहमंत्री का देश के प्रति कितना योगदान है जिसे इस तरह के बातों की जानकारी नही थी|अब नौ साल के बाद जब भाजपा के आपसी कलह से उनके नेता पार्टी छोड़ रहे हैं तब नए नए खुलासे हो रहे हैं। कुछ भाजपा नेता का तो ये कहना है की पोखरण परिक्षण सफल ही नही हुआ था|पता नही अभी और कितने नए राज खुलेंगे|और इस तरह के खुलासे से एक सवाल सभी भारतवासी के मन में होगा की मौजूदा सरकार क्या कर रही है क्या इसका उत्तर अभी मिलेगा या इसके लिए भी पाँच साल इंतजार करना पड़ेगा|

इंसान के सपने टूटते है तो वो पागल हो जाता है

इंसान के सपने टूटते है तो वो पागल हो जाता है

मेरे दोस्त अमरेन्द्र जो की फेमिना पत्रिका से जुड़े हैं उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है की अगर इंसान के सपने टूटते है तो वो पागल हो जाता है,हालाँकि की मेरा मानना है की इंसान के जब सपने टूटते हैं तो वोह सिर्फ़ पागल नही होता उसके कई रूप हो सकते है जैसे की कोई आम आदमी जिसमें दुनिया से लड़ने की क्षमता नहीं है उसके हर कोशिश, जिसके दम पर वो अपने सपने को साकार करना चाहता है उसको देखकर लोग उसे पागल कहते है ,और जिनके अन्दर लड़ने का जज्बा होता है वो अपने आखरी दम तक कोशिश करते हैं और उनकी लडाई का स्वरुप अलग होता है, उनके बगावत से समाज में कई तरह की स्थितियां पैदा होती है और उनके हर कदम पर ज़माने को ऐतराज होता है,बल्कि सच्चाई यह की जिस तरह की सुख सुविधा उन्हें होती है उस तरह की सुख की कामना हर इंसान को होती है लेकिन कुछ ऐसे जीते है की उदहारण बन जाते है ओर कुछ ज़माने के लिए घातक नासूर .उदहारण बनना सौ प्रतिशत सही है क्योंकि ऐसे लोग ज़माने को एक नए राह पर ले जाते है पर अगर घातक नासूर बन जाए तो उसे ख़त्म करने के अलावा उसके मन ओर दिमाग में चल रहे बातों का समाधान होना चाहिए ताकि ऐसे इंसान भी समाज के लिए एक उदहारण बन सके ओर उनकी तुलना एक महान आदमी के साथ हो सके.

Saturday, August 22, 2009

स्पेलिंग मिस्टेक के लिए क्षमा चाहता हूँ ,

मैंने पहली बार ब्लागस्पाट पर लिखा है ,स्पेलिंग मिस्टेक के लिए क्षमा चाहता हूँ .

Badalate hindustan ke pichhe ek hindustan aur bhi hai

आज कल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,प्रिंट मीडिया सब जगह बड़े बड़े अर्तिक्ले पढ़ने को मिलते है की देश ने आज़ादी के ६२ साल में बहुत प्रगति किया है,दुनिया के अमीर देशो में भारत की गिनती होने लगी है ,अब हम वर्ल्ड बैंक से कर्ज नही लेते,हमारे देश में गरीबी रेखा के निचे रहने वाले लोगो की संख्या अब सिर्फ़ २२ प्रतिशत रह गई है,इन वक्योनो में कितनी सच्चाई है ,क्या सड़क पर दिखानेवाले नेतागन के बड़े बड़े पोस्टर्स यह बयां करते है की हमारा देश विकास कर रहा है,या फिर देश के परेशां किसानो के आत्महत्या की बढाती संख्या ये बयां कराती है,प्रांतवाद अपने चरम सीमा है अब देश में पहले से ज्यादा आतंकवादी हमले होते है ,राजीव गाँधी के बोफोर्स मामले ने क्या सबको इतना डरा दिया है की सच्चाई जानने के बाद भी अब कोई रक्षामंत्री नए लड़ाकू हथियार खरीदने से डरता है और हर साल रक्षा विभाग का आधा पैसा सरकार को वापस कर देता,देश में आम आदमी के मदत के लिए जारि होनेवाला पैसा डेल्ही से दुल्हन की तरह निकलता है और आम आदमी तक पहुँचते पहुँचते कौन लुट लेता है और उसे कभी भी पता नही चल पता तो फिर राईट तो इन्फोर्मेशन सिर्फ़ अमीर और रसूक वाले लोगो के लिए बनाया है ,ये कुछ आम सवाल है जो लगभग भारत का हर आम आदमी जानना चाहता पर बताएगा कौन.