Tuesday, February 22, 2011

Ganguly Dada Shat Shat Naman

Main us Saurabh ganguly ko nahi janata hoon jise i.p.l mein khariddar nahi mile. Main us ganguly ko bhi nahi janata hoon jise gandi rajniti ke samne jjhukkar apne manpasand khel ko chhodana pada tha, balki main us ganguly dada ko janata hoon jisne “world cup 2003” ke dauran bhartiya criket team ki aguwai ki thi aur world cup ke final tak pahuchaya tha. Main us ganguly ko janata hoon jisne bharat ko videshi dharti par jitana sikhaya, jisne bhartiyya players ko creeze par slazing karna sikhaya, jisne team ke andar anushhashan laya. Mere jehan mein aaj bhi ganguly t-shirt ko nikalkar ghumate huye nazar aate hai. BCCI ke nayi khiladiyon ki fauj bhi ganguly dada ne hi tyaar ki thi . Aaj ke lagataar jitate huye naye bharatiya team ke jashn mein dada ka josh kahin na kahin jaroor jhhankata hai. Bhharat mein globaliisation apane pure ufan pe hai aur globaliisation ke is daur mein har poonjipati chahata hai ki kitani jaldi se woh dher sari uplabhdhiyon ko hasil kar le isliye ghode aur gadahon ki res mein sab bhag rahein hain i.p.l iska jita jagata namoona hai jismein un tamam logon ke paise lage hain jinko pata hi nahi ki cricket kya hai agar aise logon ke bich ganguly dada ka i.p.l mein selection nahi hota hai to yeh koi gambhir mudda nahi hai is baat ko lekar jayada chintit hone ki jaroorat nahi hai. Bharat mein ugate huye suraj ko har koi pranaam karta hai jabaaki dubate huye ssuraj ko pranam karne ki pratha hamare bharat meein nahi hai waise hum bharatwasiyon ko yeh baat hamesha yaad rakhhani chahiye ki jo ugata hai who dubataa jaroor hai aur agar dubega naahi to naya suraj kahaan se ugega. Aajkal cricket mein bahut sare suraj chamake hai jabki dada ke sitare gardish mein hai. Ek bar bulaandiyon ko chhune ke bad tiraskar mein bhi ek alag maja hota hai isliye ganguly dada hamare jehan mein hamesha star cricketer ke taur par bane rahenge. Dada ko koi retire nahi kar sakta dada taumra sabke chehte bane rahenge.

मैं बिहार बोल रहा हूँ

नमस्कार  मैं  बिहार  बोल  रहा  हूँ, मैं  कोई  जाती-धर्म या  व्यक्ति  विशेष नहीं  हूँ  बल्कि  मैं  एक  राज्य  हूँ  जो  अपने गठन  और  आजादी   के  साथ  ही  अपनी  पहचान  ढूढने  में  लगा  हूँ . तमाम  बुध्हजिवियों  को  पैदा  करने  के  बावजूद  मैंने  अपने  राज्य  में  शिक्षा  का  विकसित  रूप  कभी नहीं  देखा  जिसके  कारण  मेरे  रहिवासियों  को  हमेशा  से  गवार  बिहारी  कहकर  बुलाया  जाता  रहा  है. शिक्षा  के  सभी  मापदंड  मेरे  लिए  अछूते  से  रहे. मैंने  विकास  की  उस  रफ़्तार  का  आनंद  कभी  नहीं  लिया  जिसके  कारण  मुझे  देश  के  बाकि  राज्यों  का  ताना  सुनना  पड़ता  है  और  मेरे  निवासियों  को  जिल्लत  भरी  ज़िन्दगी  जिनी  पड़ती  है. करोड़ों  की  आबादी  के  साथ  मैं  हमेशा  से  इंतजार  कर  रहा  हूँ  की  मैं  कब  विकास  की  रह  पर  चलूँगा,  मैंने  विकास  की रह  पर  अभी  चलना  शुरू  ही  किया  था  की  भ्रस्टाचार  ने  मेरी  कमर  तोड़  दी. पिछले  पांच  साल  में  मीडिया  ने  मेरे  नाम  की  बहुत  रोयाल्टी खायी  है  चौबीस  घंटे  के  न्यूज़  चैनल  पर  हर  दिन  हर  चैनल  पर  कम  से  कम  1 मिनट  मेरी  ख़बर  जरूर  दिखाई  गयी. मैं  आज  भी  यह  सोचने  में  असमर्थ  हूँ  की  पिछले  पांच  साल  में  विकास  के  किन  बुलंदियों  को  छुआ है. पिछले  पांच  साल  में  मैंने  अपने  वास्तविक  विकास  को  कभी  महसूस  नहीं  किया  है. विकास  सिर्फ  सरकारी  पन्नो  पर  हुआ  है, न्यूज़  चैनल्स  पर  हुआ  है. भ्रष्टाचार  ने  मुझे  आतंरिक  रूप  से  खोखला  बना  दिया  है. विकास  के  नाम  पर  हर  शुरुआत  के  साथ  एक  दरवाज़े  से  विकास  आया  और  दूसरे  दरवाज़े  से  भ्रष्टाचार  ने  भी  अपनी  उपस्थिति  दर्ज  कराई. मुझे  शिक्षामित्र  के  नाम  पर  अनपढ़  अशिक्षित  लोगों  की  फौज  मिली  जिन्होंने  शिक्षक  बनने  के  लिए  भ्रष्टाचार  का  सहारा  लिया.  आज  भी  बिजली  के  लिए  तरसते  मेरे  बहुत  सारे  गांवो  में  बिजली  नदारद  है  वैसे  तो  यह  बिजली  पिछले  पाँच साल  से नेताओं  के  भाषण   में  आती  जाती  रही  है  पर  बिजली  के  उजाले  के  नाम  पर  मैंने  आज  तक  सिर्फ  इलेक्ट्रिक  के  खम्बे  ही  देखे है, कब  आएगी  बिजली  पता  नहीं.
पलायन  के  नाम  पर  अन्य  राज्यों  द्वारा  पिटते  हुए  मेरे  रहिवासियों  को  रोकने  के  लिए  मेरे  पास  ऐसा  कुछ  भी  नहीं  है  जिसके  दम  पर  मैं  उनके  पलायन  को  रोकने  का  दम  भर  सकूं . क्या  एक  काम  यह  नहीं  हो  सकता  है  की  रोज -रोज  चर्चा  में  आने  के  लिए  मीडिया  के  आगे  पीछे  घूमने  के  बजाय  और  जनता  दरबार  सजाने  के  अलावा  राज्य  की  राजधानी  को  छोड़कर  ग्रामीण  स्तर  पर  यह  आकलन  किया  जाये  की  विकास  की  शुरुआत  कहाँ  से  और  कैसे  की  जाये, पिछड़ेपन  के  नाम  पर  बिहार  और  झारखण्ड  के  बटवारे  को  आखिर  हम कितने  दिन  तक  कोसेंगे  और  कब  हम  अपने  ही  राज्य  में  बेहतर  सुविधा  ढूढने  की  कोशिश  करेंगे  और  बटवारे  के  दर्द  से  बहार  निकलेंगे. विकास  के  नाम पर  होनेवाले हो -हंगामें  की कड़ी  में  यह  छटवां  साल  भी  जुड़  गया  है.
अगर  आपसे  कोई  मेरे  बारे  में  पूछे  तो  कहियेगा  65% भ्रष्टाचार  + 35% विकास  = बिहार  और  बिहार  में  विकास  की  धीमी  रफ़्तार. मेरे  विकास  की  रफ़्तार  धीमी  है  लेकिन  विकास  का  पहिया  जरूर  घूम  रहा  है  आखिर  मैं  भी  कितने  दिन  तक  एक   ही  जगह  पर  खड़ा  रहूँगा. अगर  आपका  भी  बिहार  से  नाता  हो  तो  एक  बार  बिहार  जरूर  लौट  कर  आईयेगा  मेरा  आकलन  करने  के  लिए  नहीं, बल्कि  मेरे  विकास  में  योगदान  के  हौसले  के  साथ  क्योंकि  अगर  आपलोग  मेरी  मदद  नहीं  करेंगे  तो  मैं  अकेले  के  दम  पर  कितना  विकास  करूँगा. उम्मीद  है  आप  भी  मेरे  दर्द  को  जरूर  महसूस  करेंगे. बाकि  बातें  फिर  कभी.
नमस्कार
आपका  अपना  राज्य  बिहार