Tuesday, February 22, 2011

मैं बिहार बोल रहा हूँ

नमस्कार  मैं  बिहार  बोल  रहा  हूँ, मैं  कोई  जाती-धर्म या  व्यक्ति  विशेष नहीं  हूँ  बल्कि  मैं  एक  राज्य  हूँ  जो  अपने गठन  और  आजादी   के  साथ  ही  अपनी  पहचान  ढूढने  में  लगा  हूँ . तमाम  बुध्हजिवियों  को  पैदा  करने  के  बावजूद  मैंने  अपने  राज्य  में  शिक्षा  का  विकसित  रूप  कभी नहीं  देखा  जिसके  कारण  मेरे  रहिवासियों  को  हमेशा  से  गवार  बिहारी  कहकर  बुलाया  जाता  रहा  है. शिक्षा  के  सभी  मापदंड  मेरे  लिए  अछूते  से  रहे. मैंने  विकास  की  उस  रफ़्तार  का  आनंद  कभी  नहीं  लिया  जिसके  कारण  मुझे  देश  के  बाकि  राज्यों  का  ताना  सुनना  पड़ता  है  और  मेरे  निवासियों  को  जिल्लत  भरी  ज़िन्दगी  जिनी  पड़ती  है. करोड़ों  की  आबादी  के  साथ  मैं  हमेशा  से  इंतजार  कर  रहा  हूँ  की  मैं  कब  विकास  की  रह  पर  चलूँगा,  मैंने  विकास  की रह  पर  अभी  चलना  शुरू  ही  किया  था  की  भ्रस्टाचार  ने  मेरी  कमर  तोड़  दी. पिछले  पांच  साल  में  मीडिया  ने  मेरे  नाम  की  बहुत  रोयाल्टी खायी  है  चौबीस  घंटे  के  न्यूज़  चैनल  पर  हर  दिन  हर  चैनल  पर  कम  से  कम  1 मिनट  मेरी  ख़बर  जरूर  दिखाई  गयी. मैं  आज  भी  यह  सोचने  में  असमर्थ  हूँ  की  पिछले  पांच  साल  में  विकास  के  किन  बुलंदियों  को  छुआ है. पिछले  पांच  साल  में  मैंने  अपने  वास्तविक  विकास  को  कभी  महसूस  नहीं  किया  है. विकास  सिर्फ  सरकारी  पन्नो  पर  हुआ  है, न्यूज़  चैनल्स  पर  हुआ  है. भ्रष्टाचार  ने  मुझे  आतंरिक  रूप  से  खोखला  बना  दिया  है. विकास  के  नाम  पर  हर  शुरुआत  के  साथ  एक  दरवाज़े  से  विकास  आया  और  दूसरे  दरवाज़े  से  भ्रष्टाचार  ने  भी  अपनी  उपस्थिति  दर्ज  कराई. मुझे  शिक्षामित्र  के  नाम  पर  अनपढ़  अशिक्षित  लोगों  की  फौज  मिली  जिन्होंने  शिक्षक  बनने  के  लिए  भ्रष्टाचार  का  सहारा  लिया.  आज  भी  बिजली  के  लिए  तरसते  मेरे  बहुत  सारे  गांवो  में  बिजली  नदारद  है  वैसे  तो  यह  बिजली  पिछले  पाँच साल  से नेताओं  के  भाषण   में  आती  जाती  रही  है  पर  बिजली  के  उजाले  के  नाम  पर  मैंने  आज  तक  सिर्फ  इलेक्ट्रिक  के  खम्बे  ही  देखे है, कब  आएगी  बिजली  पता  नहीं.
पलायन  के  नाम  पर  अन्य  राज्यों  द्वारा  पिटते  हुए  मेरे  रहिवासियों  को  रोकने  के  लिए  मेरे  पास  ऐसा  कुछ  भी  नहीं  है  जिसके  दम  पर  मैं  उनके  पलायन  को  रोकने  का  दम  भर  सकूं . क्या  एक  काम  यह  नहीं  हो  सकता  है  की  रोज -रोज  चर्चा  में  आने  के  लिए  मीडिया  के  आगे  पीछे  घूमने  के  बजाय  और  जनता  दरबार  सजाने  के  अलावा  राज्य  की  राजधानी  को  छोड़कर  ग्रामीण  स्तर  पर  यह  आकलन  किया  जाये  की  विकास  की  शुरुआत  कहाँ  से  और  कैसे  की  जाये, पिछड़ेपन  के  नाम  पर  बिहार  और  झारखण्ड  के  बटवारे  को  आखिर  हम कितने  दिन  तक  कोसेंगे  और  कब  हम  अपने  ही  राज्य  में  बेहतर  सुविधा  ढूढने  की  कोशिश  करेंगे  और  बटवारे  के  दर्द  से  बहार  निकलेंगे. विकास  के  नाम पर  होनेवाले हो -हंगामें  की कड़ी  में  यह  छटवां  साल  भी  जुड़  गया  है.
अगर  आपसे  कोई  मेरे  बारे  में  पूछे  तो  कहियेगा  65% भ्रष्टाचार  + 35% विकास  = बिहार  और  बिहार  में  विकास  की  धीमी  रफ़्तार. मेरे  विकास  की  रफ़्तार  धीमी  है  लेकिन  विकास  का  पहिया  जरूर  घूम  रहा  है  आखिर  मैं  भी  कितने  दिन  तक  एक   ही  जगह  पर  खड़ा  रहूँगा. अगर  आपका  भी  बिहार  से  नाता  हो  तो  एक  बार  बिहार  जरूर  लौट  कर  आईयेगा  मेरा  आकलन  करने  के  लिए  नहीं, बल्कि  मेरे  विकास  में  योगदान  के  हौसले  के  साथ  क्योंकि  अगर  आपलोग  मेरी  मदद  नहीं  करेंगे  तो  मैं  अकेले  के  दम  पर  कितना  विकास  करूँगा. उम्मीद  है  आप  भी  मेरे  दर्द  को  जरूर  महसूस  करेंगे. बाकि  बातें  फिर  कभी.
नमस्कार
आपका  अपना  राज्य  बिहार 


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