Friday, June 25, 2010

बिमलदा

बिमलदा (विमल रॉय) आज एक गुज़रे हुए इतिहास हैं मुझे बिमलदा की याद इसलिए आई क्योंकि मैंने हाल ही में गुलज़ार साहब की "रावीपार" पढ़ी है इस पुस्तक में गुलज़ार साहब ने बिमल दा के जीवन के आख़िरी सफ़र को बख़ूबी पन्ने पर उतारा है। बिमलदा ने "दो बीघा ज़मीन" और "बंदिनी" जैसी कालजयी फिल्में बनायीं थी, जो कल और आज में मौजूद भारतीय परिवेश को दर्शाती हैं । वैसे तो उन्होंने ढेर सारी फिल्में बनायीं है, लेकिन मुझे सिर्फ दो ही फिल्में ज्यादा अच्छी लगी। गुलज़ार साहब ने अपनी पुस्तक "रावीपार" में इनके मृत्यु के थोड़े दिनों पहले की कहानी बयां किया है। इन्होंने लिखा है, की बिमल दा मरने से पहले हर बारह वर्ष में लगनेवाले महाकुम्भ को लेकर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। सन १९५२ में महाकुम्भ के दौरान प्रयाग के मेले में भगदड़ हुई थी जिसमे तक़रीबन १ लाख लोग मारे गए थे इसके चलते नुकसान भी काफ़ी हुआ था। एन्कवायरियां चलती रही सच्चाई का पता लगाने के लिए बहुत सारी कमिटियों का गठन हुआ लेकिन सही सच्चाई कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना को सम्रिश नामक व्यक्ति ने अपने नोवेल में उतारा लेकिन नोवेल के नायक की मौत जल्दी करा दी थी,बिमल दा इस नोवेल पर फ़िल्म बनाना चाहते थे लेकिन नायक की मौत जल्दी होने की वजह से वःखुश नहीं थे इस फ़िल्म की कहानी के लिए वो गुलज़ार साहब के साथ मिलकर काम कर रहे थे, गुलज़ार साहब के साथ मिलकर बातें किया करते थे की इस नोवेल के नायक की मौत को थोडा आगे करो एक सही जगह दो कहानी की चर्चा करते-करते वर्षों बीत गए और बिमलदा को कैंसर हो गया मरने के पहले तक वो गुलज़ार साहब से पूछा करते थे की तुम फ़िल्म पर काम कर रहे हो न और गुलज़ार साहब का जवाब होता था हाँ कर रहा हूँ। आख़िरी दिनों में इस फ़िल्म के कुछ दृश्य शूट भी करवाए और जब उनकी मृत्यु हुई वह दिन जोग स्नान का दिन था। जोग स्नान वह दिन है जिसके लिए बिमलदा फ़िल्म बनाना चाहते थे और इक्त्फाक से उसी दिन उनकी मृत्यु भी हुई थी। शायद बिमलदा जिन्दा रहे होते तो एक और बेहतरीन फ़िल्म देखने को मिल जाती और यह भी पता चल जाता की भगदड़ क्यों हुई थी, गुलज़ार साहब ने अपनी कहानी बिमलदा में बिमलदा के मौत को कुछ इस अंदाज में दर्शाया है जैसे मौत सारी समस्याओं का निवारण है बहुत राहत देती है। आज बिमलदा जिन्दा होते तो शायद "भोपाल गैस कांड" पर भी फ़िल्म बनाते जिससे लोगों तक सच्चाई पहुँचती। हो हल्ला भी होता और सरकार घटना के २५ साल बाद तक शांत नहीं बैठती पीड़ितों को मुवाज़ा भी सही समय पर मिलता क्योंकि बिमलदा ने बहुत पहले ही "दो बीघा ज़मीन " फ़िल्म बनाकर लोगों को बताया था की पहले अंग्रेजों ने लूटा था अब किसान आमिर साहूकारों के हाथों कैसे लूट रहे। इसी तरह से कह सकते है की अगर आज बिमलदा जिंदा होते तो बताते की भारत के लोगों को किस तरह से शोषण सहने की आदत पद गयी है जैसे की पहले अंग्रेजों ने लूटा फिर साहूकारों ने और अब हमारे द्वारा बनायीं हुई सरकार लूट रही है।

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